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पुस्तकों को सच्चा जीवन साथी कहा जाता है ।वे हर समय हमारे लिए उपलब्ध होती हैं ।ऋग्वेद को दुनिया की पहली पुस्तक और पहला धर्मग्रंथ माना जाता है ।पुस्तकें हजारों वर्षो से सभ्यता और भाषा विकास के मानव जाति के वे कोषागार हैं जो हमें विरासत में प्राप्त हुए हैं ।विश्व में आजतक जो भी सर्वोत्तम देखा,समझा,चिन्तन किया या जाना गया है ,पुस्तकें उन विचारों की संरक्षक व संवाहक हैं ।ज़रा पुस्तकों के बिना इस विश्व की कल्पना कीजिए ।मनुष्य के हर कार्य क्षेत्र की उपलब्धियां एक ही क्षण नष्ट हो जाएं तो हमारे पास न दर्शन बचेगा ,न ज्ञान के भंडार बचें गे ,न गीत, न कहानी,न काव्य ग्रंथ, न गणित, न विज्ञान । हमारे पास न गीता होगी न बाईबल न वेद और न शास्त्र। हमारा जीवन पाषाण युग के उस धरातल पर पहुंच जायेगा जहां न आग का ज्ञान होगा न शस्त्र का और न शास्त्र का । गुफाएं हमारी निवासस्थल हों गी और प्रकृति हमारी पोषक ।
पुस्तकें मानवीय विचार के प्रयासों की अनुभवजन्य कृतियां हैं ।पुस्तकें हमें अतीत से जोड़ने का साधन हैं ,हमारे भविष्य की आशा है ।विश्व की विविधता को जानने और समझने में हमारा मार्गदर्शन करती हैं ।यदि आप अकेले हैं तो पुस्तकों से बेहतर कोई साथी हो नही सकता ।पुस्तकें जीवन में सही और गलत के बीच में निर्णय लेने मे हमारे अवबोध का विकास करती हैं ।ये ऐसी शिक्षक हैं जो 24 घंटे हमारी सहायता के लिए उपलब्ध हैं ।
पुस्तकों का अध्ययन हमारी एकाग्रता को बढ़ाता है। हां, अध्ययन के लिए समय तो देना ही पड़ेगा ।छात्र जीवन में पुस्तकों का विशेष महत्व है ।ये बच्चों को समझदार बनाती हैं और जीवन की चुनौतियों से रूबरू होने के लिए उन्हें तैयार करती है ।उन में पढ़ने ,लिखने और बोलने की क्षमताओं में सुधार करती है ।अध्ययन से बच्चों की स्मरण शक्ति और बुद्धि का विकास होता है ।पुस्तकों का अध्ययन बालकों को जीवन के लिए तैयार करता है ताकि वे समाज और देश के लिए उपयोगी नागरिक बन सकें । पुस्तकों का अध्ययन हमारी आलोचनात्मक सोच को विकसित करना है तथा समस्याओं को सुलझाने में हमारे कौशल का विकास करता है ।विश्व में चिंतक और विचारक इसी विकास का परिणाम हैं ।
जब हम महापुरुषों की जीवनियां पढ़ते हैं तो उस समय हम वस्तुत: उन की संगति में होते हैं और हमें उन के विचारों के स्तर तक ऊपर उठने का अवसर प्राप्त होता है। अपने अफ्रीकी प्रवास के दौरान गांधी जी को रस्किन द्वारा लिखित पुस्तक UNTO THIS LAST को पढने का अवसर मिला।इसे पढ़कर वे इतने प्रभावित हुए कि उन्हों ने सर्वोदय शीर्षक से इसका गुजराती में अनुवाद किया ।अंतोदय का विचार इसी अध्ययन का परिणाम है।धार्मिक पुस्तकों का हमारे जीवन में अलग ही महत्व है ।गीता के बारे में गांधी जी ने लिखा है“गीता मेरे लिए बाईबल या कुरान नही अपितु इनसे बढ़कर है।गीता मेरे लिए मां है ।मैं ने अपनी जन्मदात्री मां को बहुत पहले खो दिया था।लेकिन गीता मेरे लिए शाश्वत मां है जिस ने मेरे जीवन में रिक्तता की पूर्ति की है ।न वह कभी बदली न उस ने कभी मेरा साथ छोड़ा।जब कभी मैं कठिनाई या कष्ट में होता हूं तो उसकी गोदी में शरण लेता हूं ।“
आज 21 वीं शताब्दी के विश्व में कुछ लोग दूरदर्शन, मानविकी आधुनिक संचालित बुद्धिकुंज ,संचार व जनसम्पर्क के अन्य माध्यमों को पुस्तकों का प्रतिद्वन्द्वी मानने लगे हैं परन्तु ऐसा कोई प्रमाण सिद्ध नही हुआ है कि ये माध्यम पुस्तकों का विकल्प बन पायेंगे ।आज के युग मे जब बच्चों का भटकाव उन्हें नशे और सामाजिक बुराईयों की ओर आकर्षित कर रहा है तो पुस्तकों का अध्ययन एक सर्वोत्तम विकल्प है ।
इतिहास में कुछ ऐसी दुखद घटनाएं भी हुई हैं जब पुस्तकालयों को जलाया गया। 1193 ई0 में तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी थी ,जिसमें कहा जाता है कि 90 लाख पुस्तकें व पांडुलिपियों आग की भेंट चढ़ गई।तीन महीने तक यहां के पुस्तकालय में आग धधकती रही
830 वर्ष बाद 2023 ई0 में फ्रांस के दंगाइयों ने देश के सब से बड़े मार्सेल पुस्तकालय को फूंक डाला ।
पुस्तकों के महत्व को देखते हुए संयुक्तराष्ट्र संघ के अभिकरण यूनेस्को ने 23अप्रैल 1995 को पहली बार विश्व पुस्तक दिवस मनाना शुरु किया।23अप्रैल2024.को 30वां विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाये गा ।यह दिवस लोगों और किताबों के बीच की दूरी को खत्म करने के लिए शुरु किया गया ।