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समाज की गतिशीलता स्त्री -पुरुष संबंधों की सहजता से सम्बद्ध है. यदि समाज का एक वर्ग उपेक्षित रहे तो समाज पक्षघात से पीड़ित व्यक्ति जैसी स्थिति में होता है. हमारा अतीत नारी के गौरव का एक स्वर्णिम अध्याय है जिस पर हम नाज करते हैँ. नारी मातृशक्ति, शील,सौंदर्य,विद्या और ममता की अद्वितीय प्रतीक रही. वैदिक काल में वह विदुषी और शिक्षित थी. विवाह पद्धति में “इदम मन्त्रम पत्नी पठेत “ उसके शिक्षित होने की बात दर्शाती है. यह तभी संभव है जब वह विदुषी हो गी. इतिहास नें करवट बदली, महाभारत काल तक आते आते उस की स्थिति में काफ़ी गिरावट आ गयी. धर्मराज युधिष्टिर ने तो उसे पूंजी की तरह जुए में दांव पर ही लगा दिया. बौद्ध और जैन भी उसकी दुर्दशा से द्रवित नहीं हुए. नारी की स्थिति में निरंतर गिरावट अत्यंत शोचनीय हो गई. राजा राममोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने समाज सुधार की दिशा में पहल की. नारी को शोषण से उबारने मे क्रांति का बिगुल बजाया. स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद और गाँधी जी ने नारी की पीड़ा को समझा और जागरण के नये युग का सूत्रपात हुआ. स्वतंत्रता संग्राम में नारी ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया. आशा की एक किरण जगी कि स्वतंत्र भारत मे नारी सम्मान से जी सकेगी. भविष्य उसे दासी नहीं अपितु सहभागिनी के रूप मे प्रतिष्ठित करेगा. स्वतंत्रता के बाद आज तो दूरदर्शन में अपराध जगत से जुडा एक चैनल रोज़ बर्बरता के नंगे नाच कि दास्तां बयाँ करता थकता नहीं. अपराध से पीड़ित कितनी नारियां आत्म हत्या पर मजबूर हो गयीं, इस का कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं.हमें अनेक उदाहरण मिलते हैं जहाँ व्यावसायिक संस्थानों में बालाओ का यौन शोषण हुआ, शोध कर रही कितनी छात्राओं के गाइड उन्हें यौन शोषण पर मजबूर करते हैं. आज मीडिया ने नारी शोषण क़ी चीत्कार को बुलंद किया हैं, परन्तु उस से भी पुरुष क़ी मानसिकता में कोई अंतर नहीं आया हैं. हम देखते हैं कि कुछ लोग स्वभाव से नेक होते हैं, कुछ समाज के भय से नेक हैं, कुछ दंड के भय से दुबक कर बैठे हैं, कुछ नेक होने का ढोंग करते हैं और कुछ राजनैतिक पहुँच से संरक्षित हो कर नेक हैँ.हमारे देश में न्याय प्रणाली बहुत जटिल हैं, कुछ लोग केस को इन जटिलताओं में उलझा कर सन्देहलाभ प्राप्त करके नेक बने बैठे हैँ . नारी स्वभाव से संवेदनशील हैं. सेवा भाव, सहनशीलता और आत्मबलिदान उसके स्वभाविक गुण हैँ. पुरुष ने उन गुणों को उसकी कमज़ोरी समझा और इसी भावना से उसे दासी बना दिया. आज बिभिन्न स्तरों पर उसका शोषण हो रहा हैं ----चाहे वह दैहिक हो मानसिक हो या आर्थिक हो. शोषण कहीं धर्म क़ी आड़ में हो रहा हैं और कहीं तंत्र मन्त्र क़ी आड़ में. कहीं धार्मिक स्थानों के तहखानो से इस क़ी बू आती हैं और कहीं राजनीति के गालियारों से. कहीं शोषण गरीबी की आड़ में हो रहा हैं, क्यूंकि गरीबी संसार में सब से बड़ा अभिशाप हैं और सब से बड़ी कमज़ोरी हैं. किसी की मज़बूरी का अनुचित लाभ ही तो शोषण कहलाता हैं. हम अपनी नैतिकता को भूल गए हैँ. औरंगज़ेब से युद्ध करते समय एक बार कुछ मुस्लिम महिलाएं शिवाजी के सेना के कब्ज़े में आ गयीं. सैनिकों ने इन्हें शिवाजी के सम्मुख पेश किया. शिवाजी ने उन्हें माँ, बहन और बेटी की तरह सुरक्षित रखा और अगले दिन सम्मान सहित मुस्लिम शिविर में भेज दिया. हमारी नैतिकता के इन आदर्शो को वर्तमान पीढ़ी व कथित उच्च वर्ग भोग लिप्सा में ग्रस्त हो कर भूल गया हैं. आज आवश्यकता हैं बर्बरता की शिकार नारी को स्वयं संभलने की. शिक्षा के क्षेत्र में नारी पुरुष को छोड़ कर आगे बढ़ रही हैं. यह एक अच्छी पहल हैं. शिक्षा आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन की ऒर ले जाती हैं. नारी जब आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हो जाती हैं तो उसकी परिवार में और समाज में एक अलग पहचान हो जाती हैं. वह आर्थिक शोषण का शिकार नहीं होती. वैसे भी गरीबी बहुत से दुर गुणों की जननी हैं. चोरी भुखमरी और कई अपराध आर्थिक जगत से जुड़े हैँ.अहिंसा परम धर्म हैं परन्तु आत्मरक्षा और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए हिंसा भी धर्म ही हैं. यौन शोषण से पीड़ित फूलन देवी ने स्वयं हथियार उठा कर अपना क्षेत्र स्वयं तय किया था. आज नारी को शोषण से उबारने के लिए ऐसे कठोर क़ानून की ज़रूरत हैं जो पीड़ित को शीघ्र न्याय दिला सके. अपराधी को कठिन से कठिन सजा का प्रावधान हो. अपराध में ग्रस्त बड़े से बड़े कर्मचारी, अधिकारी अथवा राजनेता को दण्डित किया जाये. न्याय की व्यवस्था शीघ्र हो गी तो लोगो में सत्ता और न्याय के प्रति एक विश्वास जागृत हो गा. नारी जो युगों से शोषण झेलती आ रही हैं, इस से मुक्त हो सकेगी. समाज का समग्र विकास हो गा. हम नारी को वही दर्जा दे पाएंगे जिसकी वह हक़दार हैं. नारी शोषण से मुक्त समाज हमारा ध्येय हो. आओ मिल जुल कर हम प्रयास करें और इस परिकल्पना को साकार करें.
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