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हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा है ।इस का उल्लेख संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज है ।संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद. 343 से 351तक भाषाओं का वर्णन है । 14 सितम्बर 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343(1)के अधीन हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया । हिन्दी देश की पहचान है ।यह हमारे जीवन मूल्यो, संस्कृति और संस्कारों की संवाहक, संप्रेक्षक और परिचायक भी है । हिन्दी सहज,सरल और सुगम भाषा है ।विश्व पटल पर यह सिद्ध हो चुका है कि लिपि और उच्चारण की दृष्टि से हिन्दी सब से वैज्ञानिक और शुद्ध भाषा है ।यह भारत में सब से अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है ।इस की लोकप्रियता इस बात से सिद्ध होती है कि इस के बोलने वालो की संख्या मे उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है । 2001 की जनगणना के अनुसार देश मे 41.03 प्रतिशत हिन्दी भाषी लोग थे जो 2011 में बढ़ कर43.63 प्रतिशत हो गए। दूसरे नम्बर पर बंगला भाषा का स्थान आता है जो 9.72 करोड लोगो द्वारा बोली जाती है जो कुल जनसंख्या का 3.03 प्रतिशत बनता है ।इसी क्रम मे मराठी 6.86 प्रतिशत और तेलगू 6.7 प्रतिशत क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर आती हैं । दुनिया मे कितनी भाषाएं है इसका स्टीक उत्तर देना संभव नही है ।एक अनुमान के अनुसार विश्व में 6809 भाषाएं हैं ।एथनोलाग के संस्करण मे बताया गया है कि दुनिया में सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा अंग्रेजी है जिसे 113.2 करोड लोग बोलते हैं ।दूसरा स्थान मंदारिन (चीनी)भाषा का है जिसे संसार के 111.7 करोड लोग बोलते हैं ।हिन्दी का विश्व मे तीसरा स्थान है ,इसे बोलने वालों की संख्या 60 करोड से अधिक है ।विश्व में 357 भाषाएं ऐसी हैं जिनको केवल 50 या इस से कम लोग ही बोलते हैं । हिन्दी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है ।एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 90 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों मे हिन्दी भाषा व साहित्य की पढाई हो रही है ।भारत के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका,मालदीव, सिंगापुर, मारिशस,जर्मन, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका आदि अनेक देशों में हिन्दी भाषा का प्रयोग हो रहा है ।एक अनुमान के अनुसार दुनिया के 80 करोड लोग ऐसे हैं जो हिन्दी बोल व समझ सकते हैं । हिन्दी विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमि के लोगों को जोड़ने का काम कर रही है ।यह राष्ट्रीय संचार, प्रशासन, शिक्षा और संस्कृति मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । गांधी जी ने हिन्दी के बारे में कहा था कि हिन्दी जन राज व मैत्री की भाषा है ।राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम मे लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है ।देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु जी ने कहा था कि राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी हमारे देश की एकता में सब से अधिक सहायक सिद्ध होगी ,इस मे दो राय नही । देश की अन्य भाषाएं भी जितनी समृद्ध होंगी हिन्दी को उन से उतना ही बल मिलेगा ।कुछ लोग हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी की वकालत करते हैं जो मनोवैज्ञानिक रूप से सही नही है ।कोई भी अंतर्राष्ट्रीय भाषा सीखना अच्छी बात है परन्तु मातृभाषा की कीमत पर नहीं ।गांधीजी ने कहा था कि मातृभाषा मनुष्य के मानसिक विकास के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी कि शारीरिक विकास के लिए मां का दूध ।संसार के अनेक देशों __फ्रांस ,जर्मनी, स्पेन आदि मे अंग्रेजी पढाई जाती है परन्तु अपने देश मे शिक्षा व व्यवसायिक शिक्षा का माध्यम उनकी अपनी मातृभाषा ही है ।हमारे देश में यह विडंबना है कि अंग्रेजी माध्यम से पढाई करना एक शान समझी जाती है ।यह प्रवृति धीरे धीरे बदल रही है ।नई शिक्षा नीति 2020 मे मातृभाषा के महत्व को समझने का प्रयास किया गया है ।इस में कोई दो राय नही है कि देश के गौरव को बनाए रखने के लिए हिन्दी का प्रयोग आवश्यक है ।इसे लागू करने के लिए दृढ इच्छाशक्ति की जरूरत है ।हमे आत्महीनता का भाव त्याग करना होगा ।हमारा कर्तव्य पाठक को हिन्दी की ताकत का एहसास करवाने और उस में आत्म सम्मान का भाव जाग्रत करने का है ।हमें भारतरत्न राजर्षि टण्डन के कथन को याद रखना होगा “मैं हिन्दी को मातृभाषा इसलिए नही मानता कि उसे अधिकांश लोग बोलते व समझते है ,इस कारण भी नही कि यह भारतीय संस्कृति का प्रतीक है,इसलिए भी नही कि यह प्रगतिशील व वैज्ञानिक भाषा है, अपितु मै हिन्दी को राष्ट्र भाषा इसलिए मानता हूं कि इसमे हमारी दासता की प्रतीक अंग्रेजी को निष्कासन करने की क्षमता है ।“ विश्व पटल पर हिन्दी का वर्चस्व बढ़ रहा है। 1974 से हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है ।ऐसा अनुमान है कि 2050 तक हिन्दी विश्व की सब से शक्तिशाली भाषाओं में से एक होगी ।
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