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किसी भी राष्ट्र की महानता उस देश मे निवास करने वाले व्यक्तियों मे होती है ।हमारे देश मे स्वतंत्रता से पूर्व एक वैचारिक क्रांति आई जिस ने अंग्रेजों की उस सत्ता को हिला कर रख दिया जिस के राज्य में सूर्यास्त नही होता था ।गांधी जी ने अपनी पुस्तक “हिंद स्वराज में लिखा है कि अंग्रेजों की राजसत्ता भारतीयो के सहयोग पर टिकी है,यदि सहयोग न दिया जाए तो उसे सत्ता से च्युत किया जा सकता है ।असहयोग के मूल में यही विचार था ।सरदार भगतसिंह ने 8अप्रैल 1929 को दिल्ली असेंबली हाल पर बम्ब गिराया जो केवल एक धमाका था, मारने के लिए नही अपितु बहरी अंग्रेज सरकार के कान खोलने के लिए। वैसे यदि हम भगतसिंह के विचार पढ़ें तो उन्हों ने कहा है कि बम्ब और पिस्तौल इन्कलाब नही लाते ।इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है ।क्रांति के मूल में विचार होते हैं । तीन मार्च 1931 को भगतसिंह का परिवार अंतिम बार उन से मिलने लाहौर सेंट्रल जेल मे गया ।उनके भाई कुलतार सिंह जो उस समय केवल 12 वर्ष के थे ,की आंखों मे आंसू आ गये ।भगतसिंह ने उनको एक पत्र लिखा जिस में उन्हों ने लिखा कि मुझे आप की आंखों में आंसू देखकर बडा दुख हुआ *हौसले से रहना,शिक्षा की ओर ध्यान देना और स्वास्थ्य का ध्यान रखना ।अपनी मां विद्यावती को उन्हों ने लिखा कि फांसी होने पर तुम मेरी लाश को लेने मत आना । कहीं ऐसा न हो कि तुम रो पड़ो और लोग कहें यह भगतसिंह की मां है ।उसी पत्र में एक शे“र लिखा था : मेरी हवा मे रहेगी ख्याल की बिजली यह मुश्त खाक है फानी ,रहे न रहे । अर्थात विचार मरते नही,शरीर का क्या है यह तो मुट्ठीभर राख है ।क्रांति के मूल में त्याग बलिदान और विचार होते हैं।आज स्वतंत्र भारत में ऐसी वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है जो बलिदानों से प्राप्त स्वतंत्रता का अनुरक्षण कर सके ।आज समाज मे गिरते जीवन मूल्य चिन्तन और चिन्ता का विषय है ।आज आवश्यकता है एक और वैचारिक क्रांति की जो उन संस्कारों को जन्म दे जो शरीर मन और मस्तिष्क को पवित्र करने वाले हों और नई पीढी में सहयोग, सत्यनिष्ठा ,ईमानदारी और देश के प्रति सम्मान को जन्म दे ।संस्कारों के मूल मे यही गुण विद्यमान होने चाहिए। इस के लिए व्यस्क पीढ़ी को आदर्श बनने की जरूरत है ।हमारे व्यक्तित्व की पहचान हमारे नैतिक आचरण से होती है और इसके मूल मे शिष्टाचार होता है ।शिष्टाचार की सीख घर से शुरु होती है ।माता पिता ,गुरुजन और समाज के आदर्श व्यक्तित्व की इसमे अहम भूमिका होती है । राजनीति के शीर्ष पदों पर बैठे लोग भी उन विचारों के संवाहक होते हैं जिनके व्यक्तित्व की झलक युवा पीढी का आदर्श बन सकती है।आओ मिल कर ऐसी विचारधारा को जन्म दें जिस मे राष्ट्र और राष्ट्रहित सर्वोपरि हों !
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